हेमलेट से खलनायक तक: Gavin Packard की कहानी जिसे बॉलीवुड ने भुला दिया

( एक ऐसे अभिनेता की दास्तान, Gavin Packard जिसने पर्दे पर डर पैदा किया, मगर आख़िरी वक़्त में अकेला रह गया )
Gavin Packard… एक नाम जिसे 90 के दशक की फिल्मों के दीवाने कभी नहीं भूल सकते। बड़ी कद-काठी, डराने वाली आंखें और विलेन जैसा परफेक्ट अंदाज़ — गैविन ने बॉलीवुड में खलनायकी को एक अलग ही मुकाम दिया। ‘सड़क’, ‘मोहरा’, ‘चमत्कार’, और ‘तड़ीपार’ जैसी हिट फिल्मों में उनके किरदार दर्शकों के जेहन में आज भी ताज़ा हैं। लेकिन, इसी गैविन पैकार्ड की जिंदगी का अंतिम अध्याय बहुत ही खामोशी और गुमनामी में बीता।
अमेरिकी नस्ल का भारतीय खलनायक
Gavin Packard का जन्म 8 जून 1964 को हुआ था। वे आयरिश-अमेरिकन मूल के थे। उनके दादा जॉन पैकार्ड अमेरिकी सेना में थे, जो बैंगलोर में आकर बस गए थे। गैविन के पिता अर्ल पैकार्ड एक कंप्यूटर एक्सपर्ट थे, जबकि उनकी माँ बारबरा कोंकणी महाराष्ट्रीयन थीं। इस तरह गैविन का जीवन भारतीय और पश्चिमी संस्कृति का मिश्रण था।
गैविन पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे और उनका शरीर किसी पेशेवर बॉडीबिल्डर से कम नहीं था। वे राष्ट्रीय और राज्य स्तर के अवार्ड-विनिंग बॉडीबिल्डर रह चुके थे। यही कारण था कि बॉलीवुड में वे सिर्फ एक्टर नहीं, बल्कि फिटनेस ट्रेनर के रूप में भी मशहूर हुए। संजय दत्त, सुनील शेट्टी और सलमान खान के बॉडीगार्ड शेरा जैसे बड़े नामों के वे ट्रेनर रहे।
मलयालम से मुंबई तक
गैविन ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1988 में मलयालम फिल्म ‘आर्यन’ से की, जिसमें उन्होंने मुंबई के लोकल गुंडे मार्टिन का किरदार निभाया। एक साल बाद 1989 में उन्होंने हिंदी सिनेमा में फिल्म ‘इलाका’ से डेब्यू किया। इसी साल मलयालम फिल्म ‘सीज़न’ में फैबियन के किरदार ने उन्हें आलोचकों की सराहना दिलाई और यह किरदार उनके करियर का बेहतरीन अभिनय माना जाता है।
90 के दशक में गैविन बॉलीवुड फिल्मों के स्थायी खलनायक बन गए। उनकी मजबूत बॉडी, सख्त चेहरे की रेखाएं और खतरनाक लुक उन्हें अन्य विलेन से अलग बनाते थे। उन्होंने लगभग 60 हिंदी और मलयालम फिल्मों में काम किया।
पर्दे के पीछे की ज़िंदगी
हालांकि पर्दे पर वे खौफ का नाम थे, लेकिन असल ज़िंदगी में गैविन बेहद शांत और पारिवारिक इंसान थे। उनकी शादी जरूर टूट गई, लेकिन उनकी दो बेटियाँ – एरिका पैकार्ड (बड़ी) और कमिल काइला पैकार्ड (छोटी) – उनके जीवन का अहम हिस्सा थीं। मज़ेदार बात यह है कि संजय दत्त, जो गैविन के करीबी दोस्त रहे, कमिल के गॉडफादर भी हैं।
फिल्म इंडस्ट्री से उन्होंने 2000 के दशक की शुरुआत में दूरी बना ली। उनका आखिरी फिल्मी रोल डेविड धवन की फिल्म ‘ये है जलवा’ (2002) में था। इसके बाद वे अपने भाई डैरिल पैकार्ड के साथ कल्याण में रहने लगे।

दर्दनाक अंत… और सन्नाटा
18 मई 2012 को गैविन पैकार्ड ने दुनिया को अलविदा कह दिया। बताया जाता है कि कल्याण फूल मार्केट के पास एक बाइक हादसे में वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे। बाद में उन्हें सांस की बीमारी ने घेर लिया और उनका निधन हो गया।
उनकी अंत्येष्टि अगले दिन बांद्रा के सेंट एंड्रूज कब्रिस्तान में की गई, लेकिन जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाला था – उनके अंतिम सफर में फिल्म इंडस्ट्री से कोई भी शामिल नहीं हुआ। एक ऐसा चेहरा जिसने इंडस्ट्री को कई हिट फिल्में दीं, जिसकी बॉडी से कई स्टार्स ने प्रेरणा ली — उसे इस तरह भुला दिया गया।
बॉलीवुड की कड़वी हकीकत
गैविन पैकार्ड की कहानी सिर्फ एक अभिनेता की नहीं, बल्कि बॉलीवुड की उस क्रूर सच्चाई की भी है, जहाँ चमकते सितारे एक दिन गुमनामी में खो जाते हैं। इंडस्ट्री की याददाश्त बहुत कमज़ोर होती है — जब तक परदे पर हो, तब तक ताली, और जब लाइट ऑफ हो जाए, तो याद भी नहीं।

“परदे के पीछे का सन्नाटा अक्सर उस शोर से बड़ा होता है, जो कभी तालियों में गूंजता था।”
गैविन पैकार्ड की ज़िंदगी, उनके संघर्ष और उनके अकेले अंत को याद रखना ज़रूरी है — ताकि आने वाली पीढ़ियां समझ सकें कि सफलता के पीछे भी एक कहानी होती है, जो शायद उतनी ही दिलचस्प, मगर उतनी ही दुखद भी हो सकती है।
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