Gustaakh Ishq Review: पुराने जमाने की गलियों में महकती मोहब्बत की धीमी…
FW Review
पुरानी दिल्ली की गलियों, उर्दू शायरी और 90 के दशक के सादगी भरे माहौल में बुनी ‘Gustaakh Ishq’ एक ऐसी प्रेम कहानी है जो एहसासों को धीरे-धीरे खोलती है।
29 नवंबर 2025, नई दिल्ली
Gustaakh Ishq ऐसी फिल्म है जो आज की तेज रफ्तार दुनिया में थोड़ा ठहरकर प्यार को महसूस करने का मौका देती है। विभु पुरी के निर्देशन और फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा के प्रोडक्शन में बनी यह फिल्म किसी आम रोमांटिक ड्रामा जैसी नहीं है, बल्कि एक पुरसुकून और दिल को छू लेने वाली कहानी पेश करती है। फिल्म की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि यह पुराने दिल्ली—पंजाब के माहौल, संकरी गलियों, उर्दू शायरी और तहजीब के रंगों को बेहद सरलता से स्क्रीन पर उतारती है।
कहानी
फिल्म की कहानी 90 के दशक की पुरानी दिल्ली और पंजाब में बुनी गई है। नवाबुद्दीन सैफुद्दीन रहमान (विजय वर्मा) अपने पिता की बंद होती प्रिंटिंग प्रेस को दोबारा चलाने की जद्दोजहद में लगा है। उसे भरोसा है कि अगर मशहूर शायर अजीज (नसीरुद्दीन शाह) की नज़्में वह अपनी प्रेस में छाप ले, तो सबकुछ बदल सकता है।
लेकिन अजीज साहब का मानना है कि शायरी शोहरत के लिए नहीं, रूह से निकले एहसास के लिए लिखी जाती है।
नवाबुद्दीन शायरी सीखने के बहाने उनसे मिलने जाता है और इसी दौरान उसकी मुलाकात होती है मिन्नी (फातिमा सना शेख) से—एक शांत, सरल और दिल से जुड़ी हुई टीचर। दोनों के बीच धीरे-धीरे एक मासूम रिश्ता पनपने लगता है, जिसमें कोई दिखावा या बड़ा ड्रामा नहीं… बस हल्के-हल्के एहसास हैं।
कहानी का असली तनाव इसी में है—क्या नवाबुद्दीन अपने उस्ताद की भावनाओं का सम्मान करेगा या प्रेस बचाने के लिए उनकी शायरी छाप देगा?
अभिनय
विजय वर्मा इस फिल्म में एक बिल्कुल अलग रूप में दिखाई देते हैं। जहां वे अक्सर तीखे और गुस्से वाले किरदारों में दिखते हैं, इस बार उनका शांत, गहरा और प्यार में डूबा किरदार दिल जीत लेता है। उनकी अभिव्यक्ति और आंखों का भाव कहानी को असलियत देता है।
फातिमा सना शेख अपनी सादगी और सहजता से पूरे किरदार को खूबसूरती से जीती हैं। दोनों की केमिस्ट्री बेहद स्वाभाविक लगती है।
नसीरुद्दीन शाह फिल्म में एक अलग ही ऊंचाई जोड़ते हैं। उन्हें देखकर लगता है कि शायरी जी जाती है, सिर्फ लिखी नहीं जाती। सहायक कलाकारों में शारिब हाशमी भी कहानी को और मजबूत बनाते हैं।
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निर्देशन और निर्माण
विभु पुरी और लेखक प्रशांत झा ने मिलकर एक ऐसी कहानी गढ़ी है, जो क्लासिक रोमांस की दुनिया में ले जाती है। कई दृश्य इतने खूबसूरत हैं कि सच में लगता है जैसे 90 के दशक की गलियों में पहुंच गए हों।
मनीष मल्होत्रा का प्रोडक्शन भले नया हो, मगर उनकी सोच साफ दिखती है—पुराने दौर की मोहब्बत को फिर से बड़े पर्दे पर जिंदा करना।
संगीत
फिल्म का संगीत इसकी आत्मा जैसा है। विशाल भारद्वाज की धुनें और गुलजार के बोल मिलकर कहानी को एक काव्यात्मक रूप देते हैं। गाने कम हैं, लेकिन हर गीत कहानी का एक अलग रंग खोलता है।
देखें या नहीं?
अगर आप तेज-तर्रार ड्रामा या लगातार ट्विस्ट वाली फिल्में पसंद करते हैं, तो ‘Gustaakh Ishq’ आपको धीमी लग सकती है। कुछ हिस्से लंबे भी लगते हैं।
लेकिन अगर आपको पुराना माहौल, धीरे-धीरे बढ़ता प्यार, शायरी और एहसासों वाली कहानियां पसंद हैं—तो यह फिल्म आपके दिल को जरूर छू जाएगी।
सीधी बात—यह फिल्म नेटफ्लिक्स-टाइप बिंज नहीं, बल्कि महसूस करने वाली कहानी है।
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