Film Review: एक ‘खूनी बैसाखी’ और एक नायक की लड़ाई: ‘Kesari Chapter 2’ में छिपी अनसुनी क्रांति

खूनी बैसाखी की वो दोपहर, जब बंदूकें बोलीं और आज़ादी ने चुपचाप गवाही दी—‘Kesari Chapter 2’ उसी मौन को तोड़ती है।
18 अप्रैल 2025 , नई दिल्ली
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐ (4/5)
‘Kesari Chapter 2’ केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि इतिहास के उस अध्याय का दस्तावेज है, जिसे अब तक नजरअंदाज किया गया। यह कहानी है सर सी. शंकरन नायर की — एक ऐसा व्यक्ति जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन बिना हथियार उठाए, बिना किसी नारेबाज़ी के। उन्होंने अपने कानूनी अधिकारों के जरिए अंग्रेजों की नींव हिला दी। इस क्रांतिकारी किरदार को पर्दे पर Akshay Kumar ने जीवंत किया है। उनके साथ फिल्म में Ananya Panday, R. Madhavan, अमित सियाल और मौमिता पाल जैसे कलाकारों की बेहतरीन टोली है।
कहानी कैसी है? – गर्व, गुस्सा और गहराई से भरी एक ऐतिहासिक लड़ाई
‘Kesari Chapter 2’ की कहानी शुरू होने से पहले ही एक बात साफ है—यह फिल्म हर भारतीय के दिल में गर्व की लहर और आंखों में आंसू दोनों एक साथ ला देती है। यह केवल एक ऐतिहासिक घटना का पुनः चित्रण नहीं, बल्कि एक पूरे जनमानस की पीड़ा और प्रतिशोध की आवाज़ है।
कहानी की शुरुआत होती है 13 अप्रैल 1919 को, जलियांवाला बाग नरसंहार से। अमृतसर में रौलेट एक्ट का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर जनरल डायर बिना किसी चेतावनी के गोलियां चलवाता है। निर्दोष, निहत्थे लोग, जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग शामिल होते हैं, एक खुले मैदान में फंसे रह जाते हैं। गोलियों की बौछार के बाद भी कई घंटों तक शवों को घटनास्थल पर ही छोड़ दिया जाता है—चील-कौवे तक उन्हें नोचते हैं।
इस त्रासदी के बाद सरकार प्रेस पर सेंसरशिप थोप देती है। अखबारों के पहले पन्ने पर यह खबर छपती है कि प्रदर्शनकारी हथियारों से लैस थे और उन्होंने हमला किया, इसलिए सैनिकों को मजबूरन गोली चलानी पड़ी। जब जनता में गुस्सा उफान पर पहुंचता है, तो ब्रिटिश सरकार एक ओर 25 रुपये का मुआवजा बांटती है, और दूसरी ओर मामले को दबाने के लिए एक फर्जी जांच आयोग गठित कर देती है।
यहीं से कहानी का असली किरदार सामने आता है—सर सी शंकरन नायर (Akshay Kumar)। हाल ही में ‘नाइटहुड’ की उपाधि पाने वाले नायर, इस जांच आयोग में एकमात्र भारतीय सदस्य हैं। ब्रिटिश हुकूमत उन्हें अपनी कठपुतली समझती है, लेकिन नायर की अंतरात्मा उन्हें इस झूठ का हिस्सा बनने नहीं देती।
जांच के दौरान उनकी मुलाकात होती है परगट सिंह नाम के एक युवा क्रांतिकारी (कृष्ण राव) से, जो केवल 13 साल का है। नायर और परगट के बीच पहले से एक गहरा जुड़ाव है—जो कहानी में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाता है। परगट की मौत, नायर के विचारों में बदलाव लाती है और यही पल उन्हें सत्ता के सबसे बड़े शासक के खिलाफ खड़ा कर देता है।
कहानी में अगली एंट्री होती है दिलरीत गिल (Ananya Panday) की—एक तेज़-तर्रार, जुनूनी और जमीनी जूनियर बैरिस्टर, जो नायर की सोच को और मजबूती देती है। उसके साथ की गई बातचीतें और केस की तैयारी उन्हें एक साहसी योद्धा में तब्दील कर देती हैं।
इसके बाद शुरू होता है दमदार कोर्टरूम ड्रामा, जहां नायर का मुक़ाबला होता है जनरल डायर की तरफ से खड़े बैरिस्टर नेविल मैककिनले (R. Madhavan) से। नेविल और नायर के बीच का पुराना रिश्ता और निजी मतभेद कोर्ट की बहसों को आग में बदल देते हैं।
इसी बीच एक और किरदार उभरकर सामने आता है—एक भारतीय, जो ब्रिटिश सरकार का वफादार बनकर सबको अपनी चालों में उलझाता है। इस भूमिका में अमित सियाल हैं, जो कहानी में एक अहम मोड़ लाते हैं।
अब सवाल ये है—क्या शंकरन नायर इस ऐतिहासिक जनसंहार के लिए ब्रिटिश सरकार को कटघरे में खड़ा कर पाते हैं? क्या जलियांवाला बाग में शहीद हुए निर्दोष लोगों को इंसाफ मिलेगा?
इन सवालों का जवाब जानने के लिए आपको ‘Kesari Chapter 2’ देखनी ही पड़ेगी। इतना जरूर कह सकते हैं कि यह फिल्म केवल देखने की चीज नहीं, बल्कि महसूस करने और याद रखने लायक दस्तावेज़ है।

निर्देशन, स्क्रिप्ट राइटिंग और पिक्चराइजेशन: एक परफेक्शन की मिसाल
फिल्म ‘Kesari Chapter 2’ रघु पालत और पुष्पा पालत की चर्चित किताब ‘The Case That Shook the Empire: One Man’s Fight for the Truth About the Jallianwala Bagh Massacre’ पर आधारित है। हालांकि, यह पूरी तरह डॉक्यूमेंट्री स्टाइल में नहीं बनाई गई है—और शायद यही सही फैसला था। अगर इसे हूबहू दस्तावेज़ की तरह पेश किया जाता, तो फिल्म का भावनात्मक प्रभाव और एंगेजमेंट कमजोर पड़ सकता था। निर्देशक करण सिंह त्यागी ने इसे भरपूर इमोशंस के साथ दर्शकों के सामने पेश किया है।
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कहानी की शुरुआत से क्लाइमैक्स तक हर सीन असरदार
फिल्म का शुरुआती सीन ही दर्शकों को कहानी से बांध लेता है। यहां कोई वक्त जाया नहीं किया गया—20-30 मिनट की भूमिका की जगह, पहले ही दृश्य से दर्शकों की आंखें नम हो जाती हैं। निर्देशक ने भावनाओं, दर्द, चीख-पुकार और अपनों को खोने के गम को इतनी खूबसूरती से परदे पर उकेरा है कि वो सीधे दिल में उतर जाता है।
फिल्म का क्लाइमैक्स भी उतना ही प्रभावशाली है। यह दर्शकों को तालियां बजाने, सीटी मारने और ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘भारत माता की जय’ जैसे नारे लगाने पर मजबूर कर देता है। कहानी के बीच के हिस्से भी कमजोर नहीं पड़ते। स्क्रिप्ट में हर मोड़ पर सही घटनाओं का खुलासा होता है। सभी कलाकारों को अपने किरदारों में ढलने का भरपूर अवसर दिया गया है—चाहे वो जान निसार अख्तर का छोटा-सा रोल ही क्यों न हो।

स्क्रिप्ट और संवाद: भावनाओं की चोट
करण सिंह त्यागी और अमृतपाल सिंह बिंद्रा की लिखी कहानी प्रभावशाली और प्रेरणादायक है। स्क्रिप्ट बहुत व्यवस्थित है और किसी भी मोड़ पर कहानी अपने मकसद से भटकती नहीं है। यह सिर्फ एक व्यक्ति की लड़ाई नहीं है, बल्कि पूरे देश की लड़ाई बन जाती है।
सुमित सक्सेना द्वारा लिखे गए संवाद तो दिल और दिमाग दोनों पर गहरी छाप छोड़ते हैं। कई संवाद ऐसे हैं जिन पर दर्शक अपनी सीट से उछल पड़ेंगे, तालियों की गूंज पूरे थिएटर में गूंजेगी।
निर्देशन: सरल, सटीक और असरदार
करण सिंह त्यागी का निर्देशन इस फिल्म की जान है। उन्होंने किसी भी सीन को गैरजरूरी नहीं होने दिया। हर किरदार की एंट्री और कहानी में उसकी भूमिका को इतने सिलसिलेवार ढंग से प्रस्तुत किया गया है कि दर्शक अंत तक कहानी से जुड़ा रहता है। मार्था स्टीवंस वाले कोर्टरूम ट्रैक से लेकर क्लाइमैक्स तक का सफर रोमांच से भरा हुआ है—even जब दर्शकों को इतिहास का अंत पहले से पता हो।
नितिन बैद की एडिटिंग फिल्म को और भी कसा हुआ बनाती है। VFX भले ही कम हैं, लेकिन जहां भी हैं—टॉप-क्लास क्वालिटी के हैं।
तकनीकी पक्ष और म्यूजिक
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी (देबोजीत रे) और एडिटिंग (नितिन बैद) बेहतरीन है। वीएफएक्स कम जरूर हैं, लेकिन प्रभावशाली हैं। नरसंहार के दृश्य, सूरज की किरणों का इस्तेमाल और कोर्टरूम के तनावपूर्ण माहौल को बखूबी कैमरे में उतारा गया है।
बैकग्राउंड स्कोर रोंगटे खड़े करने वाला है। ‘तेरी मिट्टी’ के अलावा ‘कित्थे गया तू सैंयां’ और ‘शेरा’ जैसे गाने कहानी को गति देते हैं और इमोशनल अपील को गहराई देते हैं।
कैसी है कलाकारों की एक्टिंग?
फिल्म ‘Kesari Chapter 2’ की सबसे बड़ी ताकत इसकी दमदार अदाकारी है। हर कलाकार ने अपने किरदार में जान डाल दी है।
Akshay Kumar एक बार फिर अपने बेहतरीन फॉर्म में लौटे हैं। उनके हिस्से फिल्म के सबसे प्रभावशाली संवाद आए हैं, जिन्हें उन्होंने पूरी संजीदगी और परफेक्शन के साथ पर्दे पर उतारा है। अक्सर उन पर डायलॉग डिलीवरी को लेकर सवाल उठते रहे हैं कि वो टेलीप्रॉम्प्टर पढ़ते हैं, लेकिन इस बार उन्होंने अपने अभिनय से इन सभी आरोपों को झूठा साबित कर दिया है। उनकी एक्टिंग और संवादों की ताकत फिल्म को ऊंचाई देती है। कहना गलत नहीं होगा कि अक्षय कुमार ने इस किरदार के जरिए अपने आलोचकों को करारा जवाब दिया है।

Ananya Panday ने भी इस फिल्म में अपने अभिनय से सभी को चौंकाया है। उन्होंने साबित कर दिया कि स्टार किड्स में भी दमदार प्रतिभा होती है। कोर्टरूम सीक्वेंस में उनकी मौजूदगी सशक्त है। उन्होंने अपने किरदार में मासूमियत, दर्द और बुद्धिमता को बखूबी उभारा है, जिससे यह साफ होता है कि आने वाले समय में वह बॉलीवुड की बेहतरीन अभिनेत्रियों में शुमार की जाएंगी।
R. Madhavan का जिक्र किए बिना यह सेक्शन अधूरा रहेगा। उनकी एंट्री इंटरवल से ठीक पहले होती है, लेकिन असली रंग इंटरवल के बाद देखने को मिलता है। वो जितनी देर से आते हैं, उतने ही प्रभावशाली तरीके से छा जाते हैं। उनकी आंखों में बदले की आग, चेहरे पर गंभीरता और संवादों में गहराई देखते ही बनती है। उन्होंने अपने किरदार को पूरी शिद्दत से निभाया है।
कृष राव का किरदार छोटा होने के बावजूद कहानी में एक अहम मोड़ लाता है और वो अपनी अदायगी से गहरा प्रभाव छोड़ते हैं।
अमित सियाल, जो तीरथ सिंह की भूमिका में हैं, हमेशा की तरह सशक्त और असरदार लगे हैं। उन्होंने फिल्म को मजबूती दी है।
अन्य सह-कलाकारों ने भी फिल्म में अपनी भूमिकाएं शानदार तरीके से निभाई हैं |
कुल मिलाकर, फिल्म की कास्टिंग और परफॉर्मेंस बेहद असरदार है और यही इस फिल्म को और भी खास बनाता है।
क्यों देखें ये फिल्म?
‘Kesari Chapter 2’ एक जरूरी फिल्म है, जो एक सच्चे हीरो की अनकही कहानी को सामने लाती है। यह फिल्म न सिर्फ इतिहास से जुड़ने का मौका देती है, बल्कि न्याय, सच्चाई और साहस की मिसाल भी पेश करती है।
यह फिल्म उन लोगों के लिए है जो सिनेमा में सिर्फ एंटरटेनमेंट ही नहीं, बल्कि कंटेंट, भावना और इतिहास भी ढूंढते हैं।
हम इस फिल्म को देते हैं 4 स्टार।
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