Film Review : ‘Bhool Chuk Maaf’ — टाइम लूप में उलझी कॉमेडी, और हम बोले… “अब बस भी करो!”


Bhool Chuk Maaf movie review
Director: Karan Sharma
Cast: Rajkummar Rao, Wamiqa Gabbi
Star Rating: ★★.5
🌀 टाइम लूप या टाइम खाऊ?
करण शर्मा की ‘Bhool Chuk Maaf’ शुरू होती है बड़े वादों के साथ—टाइम लूप + शादी + सरकारी नौकरी = मस्त मसाला कॉमेडी! लेकिन कुछ ही मिनटों में ये मसाला ऐसा जलता है कि फिल्म खुद ही “भूल” और “चूक” कर बैठती है, और दर्शक सोचता है, “माफ़ तो हम हो गए, अब छोड़ भी दो!”
राजकुमार राव बने हैं रंजन, एक ऐसा लड़का जो टिटली (वामीका गब्बी) से शादी करना चाहता है। पर लड़की के बाप ने कह दिया—“पहले सरकारी नौकरी लाओ, फिर बेटी ले जाओ।” नौकरी मिल जाती है, शादी का दिन आता है, हल्दी लगती है… और फिर BOOM! रंजन फंस जाता है टाइम लूप में।
अब बेचारा रोज़ हल्दी लगवा रहा है… इतना कि दर्शक भी सोचने लगे, “भाई, अब हल्दी नहीं, चटनी लगवा लो!”
⏳ स्क्रिप्ट: ढीली, जैसे पुरानी इलास्टिक
फिल्म की स्क्रिप्ट में कसाव नहीं, बस खिंचाव है—वो भी ज़बरदस्ती का।
संवाद ऐसे लगते हैं जैसे गूगल ट्रांसलेट ने कॉमेडी करने की कोशिश की हो।
कई बार तो टाइम लूप नहीं, साइलेंस लूप लगने लगता है, जहां हँसी दूर-दूर तक नहीं दिखती।
🎭 राजकुमार राव: ‘छोटे शहर के लड़के’ का सीरियल एडिशन
राजकुमार राव फिर से वही “छोटे शहर का परेशान लड़का” बन गए हैं।
लगता है इनका किरदार हर फिल्म के बाद बस शहर बदलता है, पर प्रोफाइल वही रहता है: सरल, सरकारी नौकरी वाला, हल्के बालों वाला लड़का।
वामीका गब्बी की बात करें तो उन्होंने फिल्म में वो ताजगी लाई है जो गर्मी में ठंडी लस्सी देती है।
संजय मिश्रा और रघुवीर यादव को देखकर खुशी हुई, लेकिन फिर दुख भी हुआ—“इतने बड़े कलाकार और इतना छोटा रोल?”
🎵 म्यूज़िक: सुना… और भूल गए
तनिष्क बागची का म्यूज़िक इस फिल्म में वैसे ही है जैसे खाने में बासी चटनी—चल तो जाती है, पर दिल नहीं लगता।
गाने थिएटर में बजते हैं, पर बाहर निकलते ही मस्तिष्क से फॉर्मेट हो जाते हैं।
बैकग्राउंड स्कोर भी ऐसा कि न झूमने का मन करे, न डरने का। मतलब… न emotion, न motion।

📢 क्लाइमेक्स: मैसेज भी है, पर भेजा कहाँ गया?
अब आते हैं फिल्म के सबसे गूढ़ हिस्से पर—क्लाइमेक्स।
जहां लगता है अब टाइम लूप से छुटकारा मिलेगा, वहां रंजन अचानक बन जाता है “संस्कार गुरु”, और शुरू हो जाता है भाषण—इतना लंबा कि शादी में पंडित जी भी कहें, “बेटा, फेरे कब होंगे?”
फिल्म कॉमेडी में हँसी लाना भूल जाती है, और मैसेज देते-देते खुद गड़बड़ा जाती है।
यह एकदम वैसा है जैसे इंस्टाग्राम रील में अचानक CSR एक्ट की जानकारी आ जाए।
👥 पब्लिक रिएक्शन: “भाई, टाइटल ही सही था – माफ़ कर दो!”
सोशल मीडिया पर तो लोग बोलने लगे—“मैडॉक फिल्म्स ने इस बार सच में गच्चा दे दिया।”
कुछ लोगों ने कहा, “राजकुमार राव की हल्दी वाली शादी देखकर हमने खुद की शादी कैंसल कर दी!”
बाकी बोले, “वामीका के सीन छोड़कर बाकी सब skip कर दो!”
🎯 निष्कर्ष: टाइम पास करना है? टाइम लूप मत देखो!
‘भूल चूक माफ़’ एक ऐसा फिल्मी अनुभव है, जहां कॉमेडी ढूंढनी पड़ती है और टाइम लूप से बाहर निकलने के लिए भगवान से प्रार्थना करनी पड़ती है।
अगर आप राजकुमार राव या वामीका गब्बी के हार्डकोर फैन हैं, तो देख सकते हैं।
बाकी लोग… ओटीटी का इंतज़ार करें। कम से कम वहाँ “स्किप 10 सेकंड” का ऑप्शन तो मिलेगा।
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