‘Kaalidhar Laapata’ Review: उम्मीदों से भटकी एक इमोशनल जर्नी, Abhishek Bachchan और दैविक की एक्टिंग चमकी, लेकिन कहानी नहीं जमीं

‘Kaalidhar Laapata’ में दिल है, दर्द है… पर दिशा नहीं
नई दिल्ली, 4 जुलाई 2025
ZEE5 पर रिलीज़ हुई Abhishek Bachchan और बाल कलाकार दैविक भगेला की नई फिल्म ‘Kaalidhar Laapata’ दर्शकों के लिए एक इमोशनल सफर का वादा करती है, लेकिन यह वादा पूरी तरह निभा नहीं पाती। फिल्म के ट्रेलर और Abhishek Bachchan की पोस्ट ने लोगों में उत्सुकता जरूर जगाई थी, लेकिन स्क्रीन पर यह कहानी उस असर को कायम नहीं रख पाती, जिसकी उम्मीद दर्शक लेकर बैठे थे।
कहानी जो भटक गई रास्ते से
फिल्म की कहानी Kaalidhar (Abhishek Bachchan) नामक एक ऐसे व्यक्ति की है जिसे कुंभ मेले की भीड़ में उसके अपने ही घरवाले छोड़ जाते हैं। खोया हुआ इंसान जब एक अनाथ बच्चा बल्लू (दैविक भगेला) से टकराता है, तब एक अनोखा रिश्ता जन्म लेता है। बच्चा जिंदगी की मासूम सच्चाइयों को अपने नजरिए से बताता है, जबकि कालीधर अपने अतीत, ग़लतियों और पहचान की तलाश में उलझा हुआ है।
Abhishek Bachchan की दमदार पर अधूरी परफॉर्मेंस
Abhishek Bachchan ने कुछ बेहद असरदार दृश्य दिए हैं – खासकर जहां वे बल्लू को खोने के डर से कांपते हैं या अपनी असहायता में शराब में डूबे हुए दिखते हैं। लेकिन स्क्रिप्ट उनके किरदार को वो गहराई नहीं देती जिसकी एक परिपक्व एक्टर को ज़रूरत होती है। उनका किरदार जितना शुरू में बिखरा हुआ है, फिल्म खत्म होते-होते भी उतना ही अधूरा लगता है।
दैविक भगेला की मासूमियत ने लूटी महफिल
फिल्म का सबसे चमकता सितारा बल्लू का किरदार निभा रहे दैविक भगेला हैं। उनकी मासूमियत, संवाद अदायगी और आंखों से छलकती ईमानदारी फिल्म को कई बार बचाती है। वह ऐसे पल देते हैं जो सीधे दिल तक जाते हैं और दर्शक को भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं।
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मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब की बर्बादी
ज़ीशान अय्यूब जैसे प्रतिभाशाली एक्टर को फिल्म में एक अधपका किरदार मिला है, जो पूरी फिल्म में कहीं भी असर नहीं छोड़ता। उनका ट्रैक जबरन कहानी में फिट किया गया लगता है और अंत तक आते-आते कोई निष्कर्ष भी नहीं देता।
फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी – बिखरी स्क्रिप्ट
‘Kaalidhar Laapata’ एक साथ कई मुद्दों को छूने की कोशिश करती है – पारिवारिक धोखा, स्मृति लोप, आत्म-खोज, सामाजिक संवेदनाएं – लेकिन इनमें से कोई भी ट्रैक गहराई तक नहीं जाता। फिल्म का टोन भी अस्थिर है – कभी यह बच्चों की मासूम फिल्म लगती है, कभी किसी गहरे सामाजिक ड्रामा की कोशिश करती है, और कभी-कभी दोनों ही नहीं बन पाती।
तकनीकी पक्ष – अच्छे विजुअल्स, अधूरा इमोशन
फिल्म में कुछ सिनेमैटिक फ्रेम बेहद खूबसूरत हैं – कुंभ मेले की भीड़, ट्रेन की छत पर यात्रा, मंदिर की घंटियों के बीच खामोशी – ये सब आंखों को भाते हैं। संगीत भी कुछ जगहों पर भावनाएं पकड़ता है, लेकिन जब कहानी ही नहीं थमती, तो दृश्य भी अपनी गहराई खो देते हैं।
देखें या छोड़ें?
अगर आप दैविक भगेला के अभिनय को देखने के लिए फिल्म देखने का मन बना रहे हैं, तो ये फिल्म आपके लिए कुछ खास पल ज़रूर ला सकती है। Abhishek Bachchan को भी देखना दिलचस्प है, लेकिन अगर आप एक मजबूत, ठोस और उद्देश्यपूर्ण कहानी की तलाश में हैं, तो ‘कालीधर लापता’ शायद आपको गुमराह कर दे।
यह फिल्म एक खोई हुई कहानी की तरह है – कुछ यादगार पलों के साथ, लेकिन अंत में अधूरी।
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