“Maa” Review: Kajol की फिल्म ‘Maa’ बनी हॉरर सिनेमा का नया मील का पत्थर, थिएटर में देखने लायक अनुभव

‘Maa’ में हॉरर से ज़्यादा है ममता की शक्ति, सिनेमाघरों में महसूस करें असली डर
नई दिल्ली, 26 जून 2025
काजोल की नई फिल्म ‘Maa’ आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है और इसे देखने के बाद एक बात साफ है – यह सिर्फ एक हॉरर फिल्म नहीं, बल्कि भावनाओं, पौराणिकता और डर का एक गहरा मिश्रण है। निर्देशक विशाल फुरिया ने इस फिल्म के ज़रिए यह साबित कर दिया है कि भारतीय हॉरर सिनेमा में भी गहराई और गुणवत्ता संभव है।
जहां एक ओर भट्ट कैंप ने सालों से हॉरर को सिर्फ डर और इफेक्ट्स तक सीमित रखा, वहीं मैडॉक फिल्म्स ने हास्य के तड़के के साथ दर्शकों को लुभाया। अब उसी ट्रेंड को अगली ऊंचाई पर लेकर आए हैं अजय देवगन और ज्योति देशपांडे, जिन्होंने ‘शैतान’ के बाद ‘Maa’ के ज़रिए एक और दमदार कदम बढ़ाया है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार कहानी की नायिका हैं काजोल, जो ‘Maa’ के रूप में अपने अभिनय से दिल जीत लेती हैं।
कहानी की तह में छिपा डर
फिल्म की कहानी शुरू होती है अंबिका (Kajol ) और उनके परिवार से, जिनकी जिंदगी एक रहस्यमय गांव चंद्रपुर से जुड़े अतीत की परछाइयों से प्रभावित होती है। पति शुवांकर (इंद्रनील सेनगुप्ता) गांव लौटने से क्यों डरते हैं, और अपनी बेटी श्वेता (खेरिन शर्मा) से क्या छिपा रहे हैं — ये सवाल फिल्म की जड़ में हैं।
एक पारिवारिक संकट के चलते जब शुवांकर गांव लौटते हैं और वापस नहीं आते, तो अंबिका अपनी बेटी को साथ लेकर उस अभिशप्त गांव की ओर निकल पड़ती हैं — और यहीं से फिल्म एक सस्पेंस और डर की रोमांचक यात्रा बन जाती है।
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काजोल की दमदार वापसी
दूसरे हाफ में फिल्म पूरी तरह काजोल के कंधों पर टिक जाती है और वह इसे बखूबी संभालती हैं। अंबिका के रूप में उनका भावनात्मक और आक्रामक रूप दर्शकों को मजबूर करता है कि वे उनकी हर सांस और हर डर के साथ जुड़ जाएं। काजोल ने यह दिखाया है कि हॉरर सिर्फ चिल्लाने और भागने की एक्टिंग नहीं, बल्कि गहराई से डर को महसूस कराने का माध्यम भी हो सकता है।
मजबूत लेखन और सधा निर्देशन
फिल्म का स्क्रीनप्ले साईविन क्वाड्रास ने लिखा है, जो इसे पौराणिकता के साथ जोड़कर एक अलग ही आयाम देता है। ‘दैत्य उर्फ अम्सजा’ का किरदार और उसे काली-दुर्गा की अवधारणाओं से जोड़ना लेखन की एक बड़ी जीत है। संवाद भी सटीक हैं और पात्रों की मानसिकता को दर्शाने में मदद करते हैं।
विशाल फुरिया ने ‘छोरी 2’ के बाद इस फिल्म में और ज्यादा परिपक्व निर्देशन का परिचय दिया है। खास तौर पर फिल्म में लाल रंग की प्रतीकात्मकता, काली पूजा के सीन और धार्मिक रचाओं का चित्रण अत्यंत प्रभावशाली है।
कलाकारों का प्रभाव
जहां Kajol फिल्म की जान हैं, वहीं रोनित रॉय का संतुलित अभिनय और इंद्रनील सेनगुप्ता का छोटा लेकिन असरदार रोल फिल्म को संजीदगी देता है। सुरज्यशिखा दास और रूपकथा चक्रवर्ती जैसे सहायक कलाकार भी अपने किरदार में फिट बैठते हैं। हालांकि, खेरिन शर्मा की कास्टिंग कमजोर कड़ी साबित हुई – उनकी एकरसता फिल्म की गति में रुकावट बनती है।
क्यों देखें ‘Maa’
‘Maa’ सिर्फ डराने के लिए नहीं बनी, यह आपको भावनात्मक रूप से भी जोड़ती है। इसकी सिनेमाई प्रस्तुति, पौराणिक जुड़ाव और परिपक्व निर्देशन इसे एक बेहतरीन थिएटर अनुभव बनाता है। ओटीटी पर यह फिल्म अपना असर खो सकती है, इसलिए इसे बड़े पर्दे पर देखने का ही सुझाव दिया जाएगा।
अगर आप हॉरर फिल्मों में कुछ नया और गहरा देखने की उम्मीद रखते हैं, तो ‘Maa’ को मिस न करें। यह फिल्म साबित करती है कि डर सिर्फ सतही नहीं होता, वह दिल और दिमाग दोनों को झकझोर सकता है – खासकर जब उसके पीछे ‘एक मां’ की ताकत हो।
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