‘Panchayat Season 4’ Review: फुलेरा का स्वाद फीका, चुनावी शोर में गुम हो गई असली पंचायत

जब Panchayat बन गई राजनीति का अखाड़ा, गुम हो गया फुलेरा का जादू
नई दिल्ली ,24 जून 2025
2020 में आई वेब सीरीज ‘Panchayat’ ने जब OTT पर अश्लीलता की बहार मची थी, तब दर्शकों को एक ताजगी दी थी – सादगी भरी, भावनाओं से जुड़ी, और पूरे परिवार संग देखने लायक कहानी। अब इसका चौथा सीजन भी अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हो चुका है, लेकिन अफसोस कि इस बार फुलेरा की वो सादगी, वो अपनापन और वो दिल छू लेने वाली बात कहीं गुम-सी हो गई है।
कमजोर कहानी, लंबी खींचतान
इस बार कहानी की नींव Panchayat चुनावों पर रखी गई है। मंजू देवी (नीना गुप्ता) और क्रांति देवी (सुनीता राजवार) आमने-सामने हैं, लेकिन असली लड़ाई उनके पतियों – प्रधान जी और भूषण उर्फ बनराकस (दुर्गेश कुमार) के बीच हो रही है। विधायक चंदू (पंकज झा) का समर्थन पाकर भूषण की ताकत बढ़ गई है, और अब वो Panchayat को एक रणभूमि में बदलने को तैयार है।
पर सीजन की सबसे बड़ी कमजोरी है – इसकी कहानी। जहां पहले सीजन गांव की खुशबू और ज़िंदगी की सच्चाई से भरे होते थे, वहीं चौथा सीजन स्क्रिप्ट के फॉर्मूले में बंधा नजर आता है। यह सीजन पिछली कड़ियों से जुड़े सवालों का भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं देता। जैसे कि गोली किसने चलाई? सचिव जी और रिंकी की प्रेम कहानी किस मोड़ पर है? इन सवालों की तरफ बस इशारा है, ठोस कुछ नहीं।
किरदार दमदार, पर रिश्तों में नहीं बची पहले जैसी मिठास
जितेंद्र कुमार, नीना गुप्ता, रघुवीर यादव, फैसल मलिक, चंदन रॉय, अशोक पाठक जैसे कलाकारों ने अपने-अपने किरदारों को पूरे मन से निभाया है। खासतौर पर इस बार अशोक पाठक यानी बिनोद ने अपने किरदार में जान फूंक दी है। लेकिन दुख इस बात का है कि सचिव जी, प्रधान जी, प्रह्लाद चा और विकास की जो चौकड़ी इस सीरीज की जान थी, इस बार वो बस औपचारिकता सी लगती है। न पहले जैसी गर्मजोशी है, न ही मजेदार तकरारें।
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प्रह्लाद चा और विकास की दोस्ती भी इस बार फीकी पड़ गई है। रिश्तों का वो असली जादू, वो अपनापन अब कहीं खो गया है। यहां तक कि नीना गुप्ता और सुनीता राजवार के बीच की राजनीतिक भिड़ंत भी असरदार नहीं बन पाई।
धीमा टेम्पो, घिसी पटकथा
सीजन की रफ्तार धीमी है। कुल 8 एपिसोड हैं, लेकिन कहानी इतनी पतली है कि वो इस संख्या को संभाल नहीं पाती। एक समय पर ये लगने लगता है कि सीरीज को जबरन खींचा जा रहा है। जिस इमोशनल और सोशल कनेक्ट के लिए ‘Panchayat’ जानी जाती थी, वो इस बार लगभग नदारद है।
कुछ चमकते चेहरे
जहां पूरी सीरीज लड़खड़ाती सी लगती है, वहीं कुछ कलाकार हैं जिन्होंने इसे संभालने की भरपूर कोशिश की है। रघुवीर यादव और नीना गुप्ता हमेशा की तरह अपने किरदारों में शानदार हैं। अशोक पाठक ने इस बार सबसे ज्यादा सरप्राइज किया है। सान्विका यानी रिंकी की मासूमियत अब भी पसंद आती है, लेकिन उनके किरदार को कोई ठोस दिशा नहीं दी गई।
‘Panchayat Season 4’ एक समय की लाजवाब सीरीज का कमजोर पड़ता अध्याय बन गया है। कहानी में न ताजगी है, न गहराई। सिर्फ कलाकारों की अदाकारी है जो इसे देखकर निराश होने से कुछ हद तक बचा लेती है। लगता है जैसे मेकर्स अब पांचवें सीजन की मंजूरी मिलने के बाद बेफिक्र हो गए हैं – दर्शक देखेंगे ही, चाहे जैसा हो।
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