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Tuesday, July 8, 2025

‘Metro… In Dino’ Review: एक ही शहर, कई कहानियां, रिश्तों की भीगी डायरी है Anurag Basu की यह म्यूजिकल फिल्म

'Metro… In Dino' Review: एक ही शहर, कई कहानियां, रिश्तों की भीगी डायरी है Anurag Basu की यह म्यूजिकल फिल्म

Anurag Basu की मेट्रो: रिश्तों की भीड़ में अकेलेपन की सच्ची झलक

रेटिंग: 3.5/5

नई दिल्ली, 4 जुलाई 2025

Anurag Basu की बहुचर्चित फिल्म ‘Metro… In Dino’ सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है। यह फिल्म 2007 में आई ‘लाइफ इन ए… मेट्रो’ की यादें ताजा करती है, हालांकि इसे सीक्वल की तरह पेश नहीं किया गया है। फिल्म की खूबी यह है कि यह सिर्फ कहानियों का मेल नहीं, बल्कि भावनाओं की एक बुनावट है, जिसमें रिश्तों की गहराइयों को खूबसूरती से बुना गया है।

एक ही फ्रेम में कई जिंदगियां


फिल्म एक एंथोलॉजी है, जिसमें मुंबई की पृष्ठभूमि में कई कहानियों को पिरोया गया है। इन कहानियों में आधुनिक दौर की उलझनें हैं, पुराने रिश्तों की परतें हैं और उम्मीद की हल्की सी किरण भी। Anurag Basu का निर्देशन एक बार फिर दर्शकों के दिलों को छूने में कामयाब हुआ है।

कोंकणा और पंकज की दमदार जोड़ी


फिल्म की सबसे प्रभावशाली कहानी है काजोल (कोंकणा सेन शर्मा) और मॉन्टी (पंकज त्रिपाठी) की, जो शादी के कई सालों बाद भावनात्मक दूरी से जूझ रहे हैं। यह जोड़ी उस मध्यमवर्गीय जीवन का प्रतीक है, जिसमें रिश्ते चुपचाप जीते जाते हैं, न निभते हैं और न ही पूरी तरह टूटते हैं। कोंकणा की परिपक्व अदाकारी और पंकज त्रिपाठी की सहजता इस कहानी को गहराई देती है।

नई पीढ़ी की उलझनें और कन्फ्यूजन


फिल्म में सारा अली खान और आदित्य रॉय कपूर की जोड़ी भी देखने को मिलती है। सारा एक ऐसी युवती की भूमिका में हैं जो अपने मन की आवाज़ को समझ नहीं पा रही, जबकि आदित्य उसे शांत करने वाला एक संतुलन हैं। दोनों की केमिस्ट्री स्वाभाविक है, लेकिन सारा की परफॉर्मेंस आदित्य के सामने थोड़ी हल्की पड़ती है।

अली-फातिमा की अधूरी कहानी


अली फजल और फातिमा सना शेख की कहानी उन रिश्तों की झलक है जो खत्म हो चुके हैं, पर आदत और डर उन्हें खत्म होने नहीं देते। ये किरदार हमारे आसपास के उन कपल्स की याद दिलाते हैं जो रिश्ते में तो हैं लेकिन एक-दूसरे से कोसों दूर।

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अनुपम और नीना की खूबसूरत केमिस्ट्री


नीना गुप्ता और अनुपम खेर की केमिस्ट्री फिल्म में एक ताजगी लेकर आती है। उम्र के इस पड़ाव पर दो पुराने साथी फिर से जिंदगी को जीने की कोशिश करते हैं। कोलकाता की गलियों जैसी मीठी और धीमी यह कहानी दिल को सुकून देती है।

संगीत – आत्मा की आवाज़


प्रीतम, पापोन और राघव चैतन्य की टीम ने फिल्म के संगीत को सिर्फ गानों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे कहानी का हिस्सा बना दिया है। हर धुन, हर गीत, हर बैकग्राउंड म्यूजिक एक भावना को जीता है।

निर्देशन – बिना शोर की कहानी


Anurag Basu ने एक बार फिर यह साबित किया है कि वो इंसानी जज़्बातों को पर्दे पर बिना अधिक संवाद के भी असरदार ढंग से दिखा सकते हैं। वह परफेक्ट रिश्तों की तलाश में नहीं हैं, बल्कि अधूरे रिश्तों की खूबसूरती को सामने रखते हैं।

क्या देखनी चाहिए ये फिल्म?


अगर आप तेज़-तर्रार कॉमेडी और हाई इमोशनल ड्रामा फिल्मों के शौकीन हैं, तो शायद ‘Metro… In Dino’ आपको धीमी लगे, लेकिन अगर आप उन फिल्मों को पसंद करते हैं जो धीरे-धीरे असर करती हैं, तो यह फिल्म जरूर देखिए।

‘Metro… In Dino’ एक संपूर्ण फिल्म नहीं है, कुछ कहानियां थोड़ी अधूरी हैं, कुछ किरदार और गहराई मांगते हैं। फिर भी यह फिल्म ऐसी है, जो खत्म होने के बाद भी दिल में बनी रहती है। फिल्म देखकर यही लगता है कि काश… यह थोड़ी और लंबी होती। यही इसकी सबसे बड़ी कामयाबी है।

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