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Tuesday, May 13, 2025

OTT और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट पर रोक लगाने की मांग: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और कंपनियों से मांगा जवाब

OTT और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट पर रोक लगाने की मांग: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और कंपनियों से मांगा जवाब

OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को कंटेंट नियंत्रण के दिशा-निर्देश तय करने का आदेश संभव

नई दिल्ली, 28 अप्रैल 2025

OTT और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बढ़ते अश्लील कंटेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार समेत नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, उल्लू डिजिटल लिमिटेड, ऑल्ट बालाजी, ट्विटर, मेटा प्लेटफॉर्म्स और गूगल जैसी बड़ी कंपनियों को नोटिस जारी कर उनका जवाब तलब किया है।

यह कार्रवाई पूर्व सूचना आयुक्त उदय माहूरकर सहित अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिका के बाद की गई है। याचिका में मांग की गई है कि केंद्र सरकार एक “नेशनल कंटेंट कंट्रोल अथॉरिटी” का गठन करे, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित हो रहे अश्लील कंटेंट पर नियंत्रण के लिए दिशा-निर्देश तय करे।

कोर्ट की टिप्पणी: गंभीर चिंता का विषय

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह मामला गहरी चिंता का विषय है। अदालत ने माना कि यह कार्यपालिका या विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए केंद्र और संबंधित कंपनियों से इस विषय पर जवाब मांगा है। बेंच ने यह भी टिप्पणी की कि अक्सर सुप्रीम कोर्ट पर कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया जाता है, फिर भी इस मामले की गंभीरता को देखते हुए कदम उठाना जरूरी समझा गया।

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याचिका में क्या हैं मुख्य बिंदु?

याचिकाकर्ताओं ने अपने निवेदन में आरोप लगाया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कई ऐसे पेज और प्रोफाइल्स हैं जो बिना किसी निगरानी के अश्लील सामग्री का प्रसार कर रहे हैं। इतना ही नहीं, कई OTT प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित कंटेंट में बच्चों से संबंधित आपत्तिजनक सामग्री (चाइल्ड पोर्नोग्राफी) के तत्व भी पाए गए हैं। याचिका में कहा गया कि इस तरह की सामग्री से सामाजिक नैतिकता को ठेस पहुंचती है और अप्राकृतिक यौन प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है, जिससे अपराध दर में भी इजाफा हो रहा है।

मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक मूल्यों पर खतरा

याचिका में यह भी कहा गया है कि इंटरनेट की सुलभता और किफायती दरों के कारण हर आयु वर्ग के लोग आसानी से इस तरह के कंटेंट तक पहुंच पा रहे हैं। इसका सीधा असर समाज की सुरक्षा, लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और पारंपरिक सामाजिक मूल्यों पर पड़ रहा है। यदि इस पर जल्द नियंत्रण नहीं लगाया गया, तो इसका दुष्प्रभाव व्यापक स्तर पर देखने को मिल सकता है।

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से आग्रह किया कि सरकार अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील और विकृत मानसिकता को बढ़ावा देने वाली सामग्री पर रोक लगाए और इस दिशा में ठोस कदम उठाए।

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