‘Nikita Roy’ Review: अंधविश्वास पर चोट करती एक डरावनी लेकिन सोचने पर…
FW Review
‘Nikita Roy’—एक हॉरर थ्रिलर जो सिर्फ डराती नहीं, सोचने पर भी मजबूर करती है
नई दिल्ली, 18 जुलाई 2025
रेटिंग: ★★★★☆ (4/5)
डायरेक्टर कुश सिन्हा की पहली फिल्म ‘Nikita Roy’ सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है और यह फिल्म डर, विश्वास और सच्चाई के धुंधले दायरे में सस्पेंस और थ्रिल का जबरदस्त मेल लेकर आई है। जहां आज की फिल्मों में डराने के लिए ज़ोरदार संगीत और अचानक चीखों का सहारा लिया जाता है, वहीं ‘‘Nikita Roy’ का डर धीरे-धीरे आपके ज़ेहन में उतरता है। यह फिल्म दर्शकों को एक रहस्यमयी यात्रा पर ले जाती है, जहां अंधविश्वास और तर्क के बीच की लकीर धुंधली हो जाती है।
कहानी: भाई की मौत से शुरू होती है रहस्य और भय की तलाश
कहानी लंदन में बसे भाई-बहन सनल रॉय (अर्जुन रामपाल) और Nikita Roy (सोनाक्षी सिन्हा) के इर्द-गिर्द घूमती है। दोनों विज्ञान और तर्क में विश्वास रखते हैं और समाज में फैले अंधविश्वास का विरोध करते हैं। सनल, एक प्रसिद्ध गुरु अमरदेव (परेश रावल) की पोल खोलने के मिशन में जुटा है, लेकिन अचानक उसकी रहस्यमयी मौत हो जाती है। यह आत्महत्या थी या कोई साजिश?
सनल की मौत के बाद, निकिता इस मामले को खुद सुलझाने का फैसला करती है। उसका दोस्त जॉली (सुहैल नैयर) उसकी मदद करता है और दोनों मिलकर उस रहस्य के पीछे छिपे सच्चाई तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। लेकिन इस जांच के दौरान वे ऐसे अलौकिक अनुभवों से गुजरते हैं जो उनके विश्वास की नींव को हिला कर रख देते हैं।
एक महिला, फ्रेया (कलिरोई त्ज़ियाफ़ेटा) की आत्महत्या, अमरदेव की रहस्यमय चेतावनी और निकिता के साथ घटती अजीब घटनाएं – क्या ये सब किसी गहरे प्लान का हिस्सा हैं या कुछ और?
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अभिनय: सोनाक्षी ने किया करियर का सबसे गंभीर प्रदर्शन
Nikita Roy के किरदार में सोनाक्षी सिन्हा ने अपने अभिनय से नई ऊंचाइयों को छुआ है। वह एक सशक्त, समझदार और सवाल पूछने वाली महिला के रूप में सामने आती हैं, जो अपने भाई की मौत के बाद भावनात्मक रूप से टूटती तो है, लेकिन हार नहीं मानती। सोनाक्षी का यह किरदार उनके करियर की सबसे नज़दीकी और परिपक्व भूमिकाओं में गिना जाएगा।
सुहैल नैयर जॉली के किरदार में ईमानदार और संवेदनशील दिखते हैं। वह फिल्म में जरूरी सहारा बनते हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी कभी मुख्य कहानी से ध्यान नहीं हटने देती।
परेश रावल अमरदेव के रूप में बेहद रहस्यमय और डर पैदा करने वाले लगते हैं। उनका शांत स्वभाव और आंखों में छिपा डर दर्शकों को असहज कर देता है। वे फिल्म के सबसे ताकतवर किरदारों में से एक हैं।
निर्देशन और तकनीकी पक्ष
कुश सिन्हा का निर्देशन बहुत संयमित और विचारशील है। उन्होंने भूत-प्रेत और डर के घिसे-पिटे फॉर्मूलों से बचते हुए फिल्म को एक मानसिक थ्रिलर बनाया है, जो अंधविश्वास के सामाजिक पहलुओं पर भी चोट करती है। पवन कृपलानी की लिखी स्क्रिप्ट और सिनेमैटोग्राफी मिलकर फिल्म को विजुअली और नैरेटिवली एक गहरी थ्रिलर बना देते हैं।
हर फ्रेम में कैमरे का काम काबिल-ए-तारीफ है—चाहे वह बंद गलियों की डरावनी खामोशी हो या रहस्यमयी घटनाओं का चित्रण, सब कुछ बेहद संतुलित और स्टाइलिश है।
क्यों देखें ‘Nikita Roy’?
अगर आप डर और सस्पेंस में डूबी कहानियों को पसंद करते हैं, तो यह फिल्म ज़रूर देखें।
सोनाक्षी का गंभीर अभिनय और परेश रावल की परछाईं जैसी उपस्थिति फिल्म को अलग दर्जा देती है।
यह फिल्म मनोरंजन के साथ-साथ समाज में मौजूद अंधविश्वासों पर भी तीखा सवाल खड़ा करती है।
‘Nikita Roy’ केवल एक हॉरर थ्रिलर नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक टिप्पणी भी है—जो दिखाता है कि कैसे कभी-कभी डर हमें बाहर से नहीं, बल्कि हमारे भीतर से घेर लेता है। कुश सिन्हा का निर्देशन, सोनाक्षी की परिपक्व परफॉर्मेंस और फिल्म की सोच-समझ कर बुनी गई कहानी इसे साल की सबसे अलग और सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्मों में शामिल करती है।
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