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Tuesday, July 8, 2025

स्क्रीन के पीछे का जादूगर: Mayur Puri

स्क्रीन के पीछे का जादूगर: Mayur Puri

स्क्रीन के पीछे का जादूगर: Mayur Puri

स्क्रीन के पीछे का जादूगर: Mayur Puri

अगर आप Mayur Puri कौन हैं या Mayur Puri biography ढूंढ रहे हैं, तो जानिए एक ऐसे कलाकार की कहानी जिसने खुद को बार-बार नए नए रंग मे गढ़ा, और शब्दों के ज़रिए भारतीय सिनेमा में अपनी गहरी छाप छोड़ी।

Mayur Puri एक मशहूर भारतीय स्क्रीनराइटर, गीतकार, निर्देशक और अभिनेता हैं, जिनका सफर अहमदाबाद की गलियों से शुरू होकर मुंबई की फिल्मी दुनिया तक पहुँचा है।

मुंबई की भीड़भाड़ भरी गलियों में, जहाँ सपने ट्रैफिक के शोर से टकराते हैं और हवा में अनकही कहानियाँ तैरती हैं, वहीं एक इंसान कल्पनाओं और हकीकत के बीच की पतली डोर पर चलता है — Mayur Puri। एक स्क्रीनराइटर, गीतकार, निर्देशक और कभी-कभी अभिनेता के रूप में पहचाने जाने वाले मयूर की कहानी सिर्फ फिल्मी उपलब्धियों की नहीं, बल्कि बार-बार खुद को नया गढ़ने वाले एक ऐसे कलाकार की है जिसे यकीन था कि अगर शब्दों को सही तरह से बरता जाए, तो वो सब कुछ बदल सकते हैं।

अहमदाबाद, गुजरात में जन्मे Mayur का बचपन किताबों, नाटकों और गुजराती थिएटर की गूंजती आवाज़ों के बीच बीता। बचपन से ही कहानियाँ कहने का शौक इतना गहरा था कि उन्होंने यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज़ से मास्टर्स की डिग्री ली और गुजरात कॉलेज से ड्रामेटिक्स में एक साल का डिप्लोमा भी किया। जब उनके साथी पारंपरिक करियर की ओर बढ़ रहे थे, मयूर ने चुनी कला की वह राह, जो अनिश्चित थी, मगर बेहद रचनात्मक।

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मुंबई पहुंचे तो साथ था बस एक बैग, कुछ स्क्रिप्ट्स और ढेर सारे सपने। शुरुआत में उन्होंने यशराज फिल्म्स से जुड़कर इंडस्ट्री की बारीकियाँ सीखीं। मगर 2004 में उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया — सुरक्षित नौकरी छोड़कर स्वतंत्र लेखक और गीतकार बनने का जोखिम उठाया।

ये फैसला जल्दी ही रंग लाया। भले ही माय नेम इज़ एंथनी गोंसाल्वेस (2008) ज़्यादा चल नहीं पाई, लेकिन 2007 में आई ओम शांति ओम में उनके लिखे संवादों ने इतिहास रच दिया। फिल्म ने पॉप कल्चर में जगह बनाई, और उसके संवाद आम भाषा का हिस्सा बन गए।

“पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त…”


आवाज़ भले ही शाहरुख खान की थी, मगर सोच Mayur Puri की।

इस फिल्म के बाद Mayur को महज लेखक नहीं, बल्कि एक ऐसा कलाकार माना जाने लगा जो भावनाओं को गीतों में और विचारों को संवादों में ढाल सकता है। हैप्पी न्यू ईयर (2014) और ABCD सीरीज़ जैसी फिल्मों में उन्होंने अपने संवादों से कहानी को ऊर्जा और गहराई दी।

2014 में, एक गौरवपूर्ण पल तब आया जब हैप्पी न्यू ईयर की स्क्रिप्ट को हॉलीवुड की प्रतिष्ठित Academy of Motion Picture Arts & Sciences की स्थायी संग्रह सूची में जगह मिली। एक छोटे से शहर का वह लड़का, जो कभी कॉलेज में नाटक करता था, अब उसकी स्क्रिप्ट स्पीलबर्ग और स्कॉर्सेसी के स्क्रिप्ट्स के साथ संग्रहित थी।

स्क्रीन के पीछे का जादूगर: Mayur Puri

Mayur मयूर रुकने वालों में नहीं थे। उन्होंने हॉलीवुड फिल्मों और टीवी शोज़ के हिंदी रूपांतरण की ओर रुख किया। द लॉयन किंग (2019), एवेंजर्स: एंडगेम, जो जो रैबिट, ऑरेंज इज़ द न्यू ब्लैक जैसे प्रोजेक्ट्स को उन्होंने अपनी कलम से भारतीय दर्शकों के दिलों से जोड़ा। वे उन गिने-चुने कलाकारों में हैं जो वैश्विक कहानियों को भारतीय भावना में पिरो सकते हैं।

2017 में, उन्होंने फिरदौस नामक एक लघु फिल्म का निर्देशन किया। यह फिल्म कई अंतरराष्ट्रीय फेस्टिवल्स में चुनी गई और कई पुरस्कार भी जीते। इससे साबित हुआ कि मयूर की कहानी कहने की शक्ति बॉक्स ऑफिस से कहीं ऊपर है।

अपने करियर में Mayur ने जम्बो जैसी ऐनिमेशन फिल्म में क्रिएटिव डायरेक्टर की भूमिका निभाई, प्रिंस जैसी एक्शन थ्रिलर और ब्लू जैसी अंडरवॉटर फिल्म के लिए स्क्रिप्ट लिखी। हर बार उन्होंने ये साबित किया कि उनके लिए कोई विधा कठिन नहीं।

मयूर की खासियत सिर्फ उनके बहुपक्षीय कार्य नहीं, बल्कि उनका धैर्य और निरंतरता है। एक ऐसी इंडस्ट्री में जहाँ शुक्रवार की कमाई तय करती है कि नाम टिकेगा या मिटेगा, मयूर ने अपनी जगह खुद बनाई — कभी गीतों के ज़रिए टूटे दिलों की आवाज़ बनकर, कभी संवादों से हँसी बिखेरकर, और कभी एक लघु फिल्म से किसी की रूह छूकर।

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आज Mayur Puri उन चंद लेखकों में से हैं जो लिखने से पहले सुनते हैं, कल्पना करने से पहले महसूस करते हैं, और स्क्रिप्ट बनाने से पहले गहराई से समझते हैं। उनका सफर इस बात का प्रमाण है कि सिनेमा केवल ग्लैमर नहीं, जुड़ाव है। और जब तक मयूर जैसे कहानीकार लिखते रहेंगे…

तब तक यकीन मानिए — पिक्चर अभी भी बाकी है।

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