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Tuesday, July 8, 2025

सिनेमा का अनसुना़ हीरो: Sathyajith – 650 से अधिक फिल्मों का चमकता सितारा

सिनेमा का अनसुना़ हीरो: Sathyajith – 650 से अधिक फिल्मों का चमकता सितारा

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं Sathyajithजो भले ही सुर्खियों में न रहें, लेकिन उनकी मौजूदगी पर्दे पर हमेशा यादगार बन जाती है। ऐसे ही एक अभिनेता थे सैयद निज़ामुद्दीन, जिन्हें हम सब Sathyajith या सत्याजीत के नाम से जानते हैं। 2 जून 1949 को जन्मे और 10 अक्टूबर 2021 को दुनिया को अलविदा कहने वाले इस अदाकार ने कन्नड़ सिनेमा में एक ऐसा योगदान दिया, जिसे भुलाना मुमकिन नहीं।

संघर्ष से चमक तक का सफर

सत्यजित का फिल्मी सफर कोई रातों-रात मिली शोहरत की कहानी नहीं थी। वे उन कलाकारों में से थे, जो परदे के पीछे मेहनत करते हैं और परदे पर एक भरोसेमंद चेहरा बनकर उभरते हैं। उनका असली नाम सैयद निज़ामुद्दीन था, लेकिन अभिनय की दुनिया में पहचान मिली सत्यजित के नाम से।

कहते हैं कि किसी भी कलाकार की असली पहचान उसकी भूमिकाओं से होती है। सत्यजित ने 650 से अधिक फिल्मों में अभिनय कर यह साबित कर दिया कि वे अभिनय के सच्चे साधक थे। एक ऐसा चेहरा, जो कभी खलनायक बना, कभी पुलिस अफसर, कभी पिता तो कभी गुरु – हर किरदार को उन्होंने अपने अंदाज़ में जिया।

“पुत्तनंजा”, “अप्थमित्र” से लेकर “शिवा मेच्चिदा कन्नप्पा” तक

1995 की फिल्म “पुत्तनंजा” में उनका किरदार दर्शकों को आज भी याद है। फिल्म में उन्होंने जो संजीदगी और असरदारी से अभिनय किया, उसने उन्हें एक मजबूत सह-कलाकार की पहचान दिलाई। वहीं, “अप्थमित्र” (2004) जैसी हिट फिल्म में उनकी उपस्थिति ने एक अलग ही आयाम जोड़ा।

उनकी एक और यादगार फिल्म रही “शिवा मेच्चिदा कन्नप्पा” (1988), जिसमें उनका अभिनय दर्शकों को बहुत पसंद आया। इसके अलावा “चैत्रदा प्रेमांजलि” (1992) भी उनकी लोकप्रिय फिल्मों में शामिल है।

खलनायकों में सबसे अलग

सत्यजित को खलनायक के किरदारों में भी खूब सराहा गया। वे नकारात्मक भूमिकाएं इस अंदाज़ में निभाते थे कि दर्शक उन्हें पसंद किए बिना नहीं रह पाते थे। उनकी आंखों की तीव्रता, संवाद अदायगी और शारीरिक भाषा में एक अलग ही प्रभाव होता था। वो खलनायक होते हुए भी दर्शकों को चुभते नहीं थे – बल्कि फिल्म की कहानी को और मजबूत बना देते थे।

हर निर्देशक की पहली पसंद

650 से अधिक फिल्मों का हिस्सा बनना कोई आसान बात नहीं होती। ये तभी संभव होता है जब एक अभिनेता पर फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को पूरा भरोसा हो। सत्यजित ऐसे ही अभिनेता थे। चाहे नई पीढ़ी के निर्देशक हों या पुराने अनुभवी फिल्मकार – सभी को पता था कि अगर सत्यजित किसी दृश्य में होंगे, तो वह दृश्य कमजोर नहीं पड़ेगा।

पर्दे के पीछे का कलाकार

सत्यजित सिर्फ एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि एक ऐसा इंसान भी थे जो नए कलाकारों को प्रोत्साहित करते, सेट पर अनुशासन बनाए रखते और सिनेमा को एक कला की तरह जीते थे। उनके सहकर्मी बताते हैं कि वे हमेशा दूसरों की मदद करने को तैयार रहते थे और हर शॉट को परफेक्ट बनाने के लिए मेहनत करते थे।

आखिरी सलाम

10 अक्टूबर 2021 को सत्यजित ने इस दुनिया को अलविदा कहा। उनका निधन सिर्फ एक व्यक्ति का जाना नहीं था, बल्कि कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के एक युग का अंत था। आज भी जब लोग पुरानी कन्नड़ फिल्मों को देखते हैं, तो सत्यजित का चेहरा सामने आते ही एक सम्मान का भाव पैदा होता है।

उनकी विरासत

सत्यजित की सबसे बड़ी विरासत है उनका काम। एक अभिनेता के तौर पर वे भले ही सुपरस्टार की कैटेगरी में न गिने गए हों, लेकिन उनका योगदान किसी भी सुपरस्टार से कम नहीं रहा। उनकी फिल्में आज भी फिल्म स्कूलों में एक उदाहरण के तौर पर दिखाई जाती हैं कि कैसे एक सह-कलाकार भी फिल्म को ऊँचाई तक पहुंचा सकता है।

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सत्यजित जैसे कलाकार विरले ही होते हैं। उन्होंने यह साबित कर दिखाया कि प्रतिभा को हमेशा चमकने के लिए केंद्र में होना जरूरी नहीं होता। एक सच्चा कलाकार वही होता है जो हर किरदार को उसी ईमानदारी और लगन से निभाए – और यही बात सत्यजित को कन्नड़ सिनेमा का एक चमकता सितारा बनाती है।

Sathyajith आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका काम, उनकी अदायगी और उनका नाम – हमेशा सिनेमा प्रेमियों के दिलों में जिंदा रहेगा।

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