Anurag Kashyap ने ‘Phule’ पर सेंसर बोर्ड की कार्रवाई को बताया चिंताजनक, बोले- “जातिवाद को छिपाने की कोशिश हो रही है”

‘Phule’ फिल्म पर लगे जातिवाद के आरोपों ने छेड़ी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस
17 अप्रैल 2025 , नई दिल्ली
फिल्म निर्माता और अभिनेता Anurag Kashyap ने निर्देशक अनंत महादेवन की आगामी बायोपिक ‘Phule’ को लेकर उठ रहे विवादों पर चिंता जताई है। प्रतीक गांधी और पत्रलेखा अभिनीत इस फिल्म पर जातिवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगने के बाद से यह लगातार सुर्खियों में बनी हुई है।
मामला तब और गर्माया जब केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) ने फिल्म में मौजूद जाति से जुड़े कुछ शब्दों और संदर्भों को हटाने का निर्देश दिया। इस आदेश के बाद फिल्म की टीम को 25 अप्रैल को रिलीज से पहले कई बदलाव करने पड़े हैं।
हटाए गए शब्द और बदलाव
CBFC के निर्देशानुसार, फिल्म से ‘महार’, ‘मांग’, ‘पेशवाई’ और ‘मनु की जाति व्यवस्था’ जैसे शब्दों को हटाया गया है। इन बदलावों ने फिल्म की मूल भावना और उसके ऐतिहासिक संदर्भों को लेकर बहस छेड़ दी है।
Anurag Kashyap की प्रतिक्रिया
CBFC के इस फैसले पर अपनी नाराजगी जताते हुए Anurag Kashyap ने अपने इंस्टाग्राम स्टोरी पर लिखा:
“पंजाब 95, तीस, धड़क 2, Phule- मुझे नहीं पता कि और कितनी फिल्में हैं जो इस जातिवादी, क्षेत्रीय और नस्लीय एजेंडे को उजागर करने की कोशिश में रोकी जा रही हैं। हमारे नेता कह चुके हैं कि जाति व्यवस्था खत्म हो चुकी है, पर सच्चाई सब जानते हैं।”
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अन्य फिल्मकार भी हुए मुखर
Anurag Kashyap ही नहीं, अनुभव सिन्हा जैसे अन्य चर्चित फिल्म निर्माताओं ने भी सेंसरशिप को लेकर चिंता जाहिर की है।
‘थप्पड़’ जैसी चर्चित फिल्म बना चुके अनुभव ने लिखा:
“क्या समाज में जाति व्यवस्था नहीं है? क्या यह कभी नहीं थी? हमें खुद से झूठ क्यों बोलना चाहिए? चुनावी भाषणों में जो भाषा इस्तेमाल होती है, और फिल्मों में जो कंटेंट रोका जाता है, क्या ये दो अलग-अलग मानक नहीं हैं? दोनों ही माध्यम समाज से संवाद करते हैं।”
ट्रेलर से ही उठा बवाल
गौरतलब है कि ‘Phule’ का ट्रेलर जारी होते ही फिल्म विवादों में आ गई थी। जोतीबा फुले और सावित्रीबाई फुले जैसे समाज सुधारकों की जीवनगाथा पर बनी इस फिल्म में जातिवाद के मुद्दों को प्रमुखता से दिखाया गया है, जो कुछ लोगों को नागवार गुजरा।
अब देखना यह होगा कि तमाम विवादों और सेंसरशिप के बावजूद ‘Phule’ दर्शकों तक अपनी बात पहुंचा पाने में कितनी सफल होती है।
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