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Tuesday, July 8, 2025

‘Sitaare Zameen Par’ Review: भावनाओं से भरी Aamir Khan की वापसी, लेकिन लंबाई और उपदेशात्मक लहज़ा बना कमजोरी

'Sitaare Zameen Par' Review: भावनाओं से भरी Aamir Khan की वापसी, लेकिन लंबाई और उपदेशात्मक लहज़ा बना कमजोरी

हीरो वो नहीं जो बचाता है, हीरो वो जो समझता है – Aamir Khan की फिल्म “Sitaare Zameen Par” यही सिखाती है!

  • फिल्म रिव्यू: सितारे जमीन पर
  • स्टार रेटिंग: 3.5/5 🌟🌟🌟
  • डायरेक्टर: आर एस प्रसन्ना
  • शैली: इमोशनल ड्रामा

नई दिल्ली, 20 जून 2025

तीन साल बाद बड़े पर्दे पर लौटे Aamir Khan एक बार फिर से एक ऐसे विषय को छूते हैं, जिसे बॉलीवुड अक्सर या तो नज़रअंदाज़ करता है या ग़लत तरीके से पेश करता है — न्यूरोडायवर्जेंस यानी बौद्धिक विकास में अंतर रखने वाले लोगों की दुनिया। फिल्म ‘Sitaare Zameen Par’ जहां एक ओर इंसानियत, समावेश और उम्मीदों का पैगाम देती है, वहीं दूसरी ओर इसकी खामियां इसे एक बेहतरीन फिल्म बनने से रोक लेती हैं।

कोच गुलशन और ‘टीम सितारे’ की अनोखी जर्नी


फिल्म की कहानी गुलशन (Aamir Khan) नामक एक असिस्टेंट बास्केटबॉल कोच पर आधारित है, जो अपने गुस्से और लापरवाही के चलते एक कोर्ट केस में फंस जाता है। उसे सज़ा के तौर पर ऐसे युवाओं को कोचिंग देनी होती है जो इंटेलेक्चुअली डिसेबल्ड हैं — यानी जिन्हें ऑटिज्म, डाउन सिंड्रोम या फ्रैजाइल एक्स जैसे विकार हैं।

शुरुआत में इन बच्चों को ‘पागल’ कहने वाला गुलशन धीरे-धीरे उनमें वो रोशनी देखना शुरू करता है जो शायद उसे खुद की ज़िंदगी में नहीं दिखती थी। इसी सफर में उसकी अपनी ज़िंदगी की गांठें भी धीरे-धीरे खुलती हैं — चाहे वो उसकी टूटी शादी हो, या उसके बचपन के जख्म।

कहानी में ताजगी, लेकिन ट्रीटमेंट में थकावट


‘Sitaare Zameen Par’ स्पैनिश फिल्म ‘Campeones’ का रूपांतरण जरूर है, लेकिन इसकी देसी संवेदनशीलता और ह्यूमर इसे एक ताज़ा एहसास देती है। खास बात ये है कि इसमें भावनाओं का दोहन नहीं किया गया — हास्य के ज़रिये गंभीर बात को कहा गया है, जो एक मुश्किल काम है।

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आर.एस. प्रसन्ना का निर्देशन संवेदनशील है, और टीम के बच्चों के दृश्य — जैसे एक प्लेयर का हवाई जहाज़ देखकर समय का अनुमान लगाना या नहाने से डरना — सच्चे लगते हैं और गुदगुदाते भी हैं। पर अफसोस, फिल्म का सेकेंड हाफ खिंचता है, और क्लाइमैक्स तक पहुंचते-पहुंचते ऐसा लगता है मानो आप किसी मोरल साइंस क्लास में बैठ गए हों।

भावनाओं की भरमार, लेकिन फोकस की कमी


गुलशन का किरदार दिलचस्प है — एक अपरिपक्व, खुद से लड़ता हुआ इंसान। लेकिन जब उसके साथ कई उपकथाएं जोड़ दी जाती हैं — जैसे डैडी इश्यूज़, शादी का दबाव, मां के जीवन की दूसरी पारी — तो फिल्म का फोकस बिखरने लगता है। यही नहीं, जेनेलिया डिसूज़ा का किरदार भी अधूरा-सा लगता है। उनकी और Aamir Khan की केमिस्ट्री कभी भी ‘Taare Zameen Par’ के निकुंभ और माया जैसी गहराई नहीं बना पाती।

असली सितारे वो बच्चे हैं


फिल्म की जान हैं बच्चे — आशीष पेंडसे, अयुष भंसाली, ऋषभ जैन, वेदांत शर्मा, सम्वित देसाई, सिमरन मंगेशकर जैसे कलाकारों ने अपने किरदारों को बेहद ईमानदारी से निभाया है। खासकर सिमरन मंगेशकर (गोलू खान) ने तो स्क्रीन पर आते ही समां बांध दिया। उनका बिंदास, आत्मनिर्भर अंदाज़ और कॉमिक टाइमिंग लंबे समय तक याद रहेंगे।

गुलशन और गोलू के बीच के हल्के-फुल्के पल — जैसे पिज्ज़ा से प्याज़ निकालना या बालों में हेयर क्लिप लगाना — फिल्म को भावनात्मक ऊंचाई देते हैं। वहीं ब्रिजेन्द्र काला और गुरपाल सिंह भी अपने छोटे लेकिन प्रभावशाली किरदारों से फिल्म को मज़बूती देते हैं।

कमज़ोर संगीत और लंबा रनटाइम बनी रुकावट


फिल्म का संगीत और बैकग्राउंड स्कोर उम्मीद से कमज़ोर है। न कोई यादगार गाना, न ही कोई ऐसा म्यूजिकल मोमेंट जो भावनाओं को गहराई दे सके। इसके अलावा 2 घंटे 39 मिनट का रनटाइम दर्शकों की सहनशीलता की परीक्षा लेता है।

फिर भी देखी जा सकती है ये फिल्म, क्योंकि…


‘Sitaare Zameen Par’ भले ही Taare Zameen Par जैसी क्लासिक न बन पाए, लेकिन ये एक ज़रूरी फिल्म है — इसलिए नहीं कि ये परफेक्ट है, बल्कि इसलिए कि ये वो बातें कहती है जो अक्सर कहने से रह जाती हैं। यह फिल्म न्यूरोडायवर्जेंट लोगों को नायक बनाकर उन्हें उनका हक देती है। ये दर्शाती है कि ‘नॉर्मल’ की कोई तय परिभाषा नहीं होती — हर किसी का नॉर्मल अलग होता है।

और आज जब सिनेमाघरों में शोर-शराबा, एक्शन और राष्ट्रवाद हावी है, ऐसे में Aamir Khan की ये कोशिश एक ताज़ी हवा के झोंके जैसी है। हां, इसकी खामियां हैं, पर इसका दिल सही जगह पर है।

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